
देवासुर-संग्राम को कौन नहीं जानता, लेकिन देवों और असुरों के इस दीर्घकालिक महासंग्राम के पीछे का कारण क्या था?
क्यों देवताओं और दानवों में इतनी शत्रुता थी?
देवों के गुरु बृहस्पति और दैत्यगुरु शुक्राचार्य की परस्पर स्पर्धा का आरंभ कैसे हुआ?
क्या हुआ था शुक्राचार्य के बाल्यकाल में जिसने भार्गव शुक्राचार्य को दैत्यगुरु शुक्राचार्य बना डाला?
क्या मृत्यु को जीता जा सकता है?
मृत-संजीवनी विद्या क्या है? अपनी माता उषा के नाम पर ऊष्ना कहे जाने वाले शुक्राचार्य ने इसे कैसे और किन परिस्थितियों के चलते प्राप्त किया?
और शुक्राचार्य की लाड़ली पुत्री की माता कौन थी? कौन थी देवयानी की माता और कैसे हुआ देवयानी की कथा का आरंभ?
इन सब प्रश्नों का उत्तर देती,
संतान का महत्व और जीवन का मूल्य समझाती और मृत्यु को निकटता से देखते हुए छल, प्रपंच, राजनीति और युद्ध के वीभत्स पहलू को दर्शाती महाकाव्य महाभारत के व्याख्यान ‘देवयानी’ की यह पूर्व कथा।
*Note: यह पुस्तक लेखक की पिछली पुस्तक ‘देवयानी’ की पूर्वकथा यानि Prequel है। इसलिए कहानी का पूर्ण आनंद लेने के लिए ‘देवयानी’ ज़रूर पढ़ें।