Devayani

देवयानी का वर्णन महाकाव्य महाभारत में आता है. वह दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य की लाड़ली पुत्री थी. यह पुस्तक उसी देवयानी की कथा वर्णित करती है. यह उपन्यास जीवन की कुछ कड़वी सच्चाईयों को दिखलाने का प्रयास करता है. स्वार्थ और प्रेम तथा घृणा और द्वेष में व्यक्ति क्या कुछ सकता है यह भी इस पुस्तक के माध्यम से दर्शाने का प्रयास किया गया है.

Devayani Cover

Book Description

देवों और असुरों के मध्य चल रहे संग्राम को एक लम्बी अवधि हो गयी थी. देवों के पास दिव्यास्त्र थे किन्तु फिर भी असुरों का पलड़ा भारी था. कारण थे दैत्यगुरु शुक्राचार्य. उनके पास एक ऐसी विद्या थी जिसे मृत-संजीवनी विद्या कहा जाता है. युद्ध में दिव्यास्त्रों के प्रहार से जितने भी असुर मारे जाते, शुक्राचार्य उन्हें फिर से जीवित कर देते. किन्तु देवताओं के गुरु बृहस्पति के पास ऐसा कोई उपाय नहीं था. अतः जो देव मारे जाते वे फिर पुनर्जीवित नहीं हो सकते थे.

युद्ध, घृणा, शत्रुता और कुटिलता की पृष्ठभूमि में है –देवयानी. देवयानी जोकि शुक्राचार्य की अतिप्रिय पुत्री थी. यह कहानी उसी देवयानी के इर्द-गिर्द घूमती है. बुद्धिमती, रूपवती और दैत्यगुरु शुक्राचार्य की प्रिय होने के बाद भी क्यों और कैसे देवयानी को अपने जीवन में सुख और संतोष के लिए संघर्ष करना पड़ता है? यह कहानी यही बताती है. इसके अलावा यह कहानी हमें देवयानी के प्रेम-संघर्षों के बारे में भी बताती है.

कुछ समय पूर्व अपने सोलहवें वर्ष में प्रवेश करने वाली देवयानी को अभी बहुत कुछ सीखना है. उसके पिता के प्रेम की छावं में उसे कभी ज्ञात न हुआ कि धुप कितनी जलन पैदा करती है. उसे अभी संसार और इसके लोगों को ठीक से जानना है. संसार वैसा नहीं है जैसा देवयानी समझती है.

प्रेम, मैत्री, दांपत्य आदि पर प्रकाश डालती यह कथा हमें जीवन मूल्यों का भी पाठ सिखलाती है.

तो चलिए देवयानी के साथ उसकी जीवन-यात्रा पर और उसकी कहानी को अपनी स्वयं की आँखों से देखते हैं.

Devayani Sample Chapter