
महाबली हनुमान ने जल में अपनी छवि देखी. उनके विशाल व सुन्दर नेत्र साफ़ दिख रहे थे. जल स्पष्ट था. हनुमान ने अपनी गदा, मुकुट एवं अन्य आभूषण उतार कर किनारे पर रख दिए और जल में प्रवेश कर गए. वह घुटनों तक जल में खड़े थे. आस-पास कोई नहीं था. सारा वातावरण शांत था. परन्तु जैसे ही उन्होंने अपनी, बड़ी अंजुली जल में डुबोई, एक भयावह तथा कुरूप दैत्य ने उन पर आक्रमण कर दिया. हनुमान एकदम से सम्भले और उस दैत्य को देखा. वह किसी विषैले कीट की भांति दिखता था जो कि किसी हाथी के आकार का था. उसके बड़े-बड़े दांत और एक लम्बी जिव्हा थी. उसने अपने अगणित लम्बे पैरों से हनुमान पर आक्रमण करना चाहा तो हनुमान उछल कर एक ओर हो गए.
कोई अन्य होता तो भय से काँप रहा होता किन्तु हनुमान को तो ज्ञात भी नहीं था कि भय क्या होता है. वे उससे भयभीत होने के विपरीत हँसने लगे और बोले, “तुम तो बड़े ही सुस्त हो, मुझे छू भी न पाए. पुनः प्रयास करो.” उस दैत्य ने पुनः आक्रमण किया परन्तु हनुमान फिर बच गए.
उस समय हनुमान केवल लंगोट में थे. उनके केश खुले हुए थे और पूंछ इधर-उधर लहराकर दैत्य को चिढ़ा रही थी. उस दैत्य के लम्बे-लम्बे हाथ थे किन्तु फिर भी वह हनुमान को छू भी नहीं पा रहा था और उसपर हनुमान अपनी वानर-क्रीड़ा से उसे क्रोध दिला रहे थे. पर फिर अचानक, हनुमान स्थिर हो गए और गंभीरता से बोले, “क्रीड़ा बहुत हो गई. अब और अधिक समय मैं तुम पर व्यर्थ नहीं कर सकता.” कहकर वे लड़ने के लिए तत्पर हो गए. अपनी युद्ध-मुद्रा में हनुमान और भी भयंकर लगते थे. उनकी विशाल जंघाएँ, लम्बी-सुडौल भुजाएं तथा चौड़े कंधे और छाती किसी के भी रक्त के थक्के जमाने के लिए पर्याप्त थे.
कालनेमि अब तक की हनुमान की उछल-कूद सुनकर विचलित था. परन्तु अब उसे लगने लगा कि आर या पार की लड़ाई आरंभ होती है. कुछ उठा-पटक के बाद उसने दैत्य की भयंकर गर्जना सुनी. इससे कालनेमि हर्शोल्लासित हो गया. उसे विश्वास हो गया कि हनुमान नाम का शूल अब लंकेश के पाँव से सदा के लिए निकल गया. वह हनुमान का शव देखने के लिए उठा ही था कि उसने किसी के आने की आहट सुनी. यह हनुमान था.
हुआ यह था कि हनुमान को गंभीर देख, उस जीव ने इस बार अपनी जिव्हा से हनुमान पर आक्रमण किया. हनुमान भी सतर्क थे. उन्होंने उस दैत्य को जिव्हा से ही पकड़ लिया और देखते ही देखते एक ओर से दूसरी ओर पटकना आरंभ कर दिया. दैत्य अब संभवतः अपनी धृष्टता पर पछता रहा था. परन्तु हनुमान इतने पर बस करने वाले नहीं थे. दैत्य को पट्खनियाँ देने के उपरांत हनुमान ने उसे अपने पाँव के नीचे दबाया और उसकी जिव्हा को दो हिस्सों में फाड़ दिया. फिर हनुमान ने उसकी भुजाएं उखाड़ी और अंत में एक मुक्का उसके सर में जमाया. जिससे उस दैत्य का अंत हो गया.
कालनेमि ने हनुमान को अपने समक्ष खड़ा पाया. उसने सुन रखा था कि ब्रह्माण्ड में ऐसा कोई कार्य नहीं है जिसे करने की हनुमान ठान ले और कर न पाए. आज इसे सत्य होता उसने अपने नेत्रों से देख भी लिया. हनुमान ने दैत्य को मार दिया था. अब कालनेमि ने चाल बदलने की ठानी. उसने अनभिग्य होने का अभिनय करते हुए कहा, “प्रिय हनुमान! तुमने बहुत समय लिया. क्या हुआ?”
हनुमान ने अपनी गदा भूमि पर ठोंकी. इससे एकाएक कम्पन उठा और कालनेमि अपने आसन से नीचे गिर पड़ा. हनुमान ने उपहास करते हुए कहा, “रावण ने किसको मुझे मारने भेजा है…जो अपना आसन नहीं संभाल सकता वह हनुमान को क्या मारेगा?”
कालनेमि जान गया कि हनुमान का मर्म क्या है, किन्तु फिर भी बात सम्भालते हुए कहने लगा, “यह तुम क्या बातें कर रहे हो, केसरीनंदन?”
“अब और अधिक अभिनय करने की आवश्यकता नहीं है, कालनेमि. मुझे सब सत्य ज्ञात हो गया है. जैसे ही मैंने उस दैत्य का वध किया, उस दैत्य-रुपी शापित अप्सरा धान्य्वरी ने मुझे धन्यवाद में तेरी वास्तविकता बता दी. अब तू मुझसे नहीं बच सकता. किन्तु यह तूने अच्छा किया कि परलोक जाने से पूर्व प्रभु श्री राम के नाम का जाप किया…झूठ-मूठ में ही सही. परन्तु इससे तेरे पाप कुछ कम अवश्य हो जाएंगे, जो तूने रावण के संग रहकर किये हैं.”
अब कालनेमि को और झूठ बोलने की आवश्यकता नहीं थी. उसका सत्य उजागर हो चुका था. अब उसने सीधे-सीधे हनुमान के साथ शक्ति-परीक्षण करने की ठानी. उसके पास कालकूट विष अभी भी था. अतः उसने हनुमान को खुली चुनौती देते हुए कहा, “मेरे पाप और पुन्य की चिंता तू न कर हनुमान. यह कार्य विधाता पर छोड़ दे. तू तो बस यह सोच कि तू मुझसे कैसे बचेगा?” कहकर कालनेमि ने अपना वास्तविक रूप धारण किया. काले-लम्बे केशों, बड़े-बड़े नुकीले दांतों और लम्बी-इकहरी काया के साथ उसका रूप रोम-रोम में कम्पन उत्पन्न करने वाला था.
कालनेमि अपना वार करे इससे पूर्व ही हनुमान ने अपना दांव खेल दिया. निमिष-मात्र में उनकी पूंछ लम्बी हुई और जाकर कालनेमि के गले से लिपट गई. कालनेमि मुख से विष तो क्या उगलता वह तो बचाव की भी न सोच पाया. अगले ही पल हनुमान ने गेंद की भांति उससे खेलना आरंभ कर दिया. पूंछ उसे एकाएक निकट लाती और हनुमान अपनी गदा के प्रहार से उसे दूर भेज देते. तीन-चार बार यूँ खेलने के उपरांत हनुमान ने अपनी गदा को हत्थे की ओर से भूमि में गाड़ा और पूंछ का फंदा कालनेमि के गले में डालकर तीव्र वेग से सीधा आकाश में उड़ गए.
कालनेमि रक्त से नहाया हुआ था. उसे एक पल को चेतना आती थी और फिर चली जाती थी. रक्त उसकी आँखों में टपक रहा था. यह सत्य है कि हनुमान की सभी दिव्य वरदानी शक्तियां काम नहीं कर रही थीं किन्तु उड़ने की शक्ति और बाहुबल ही पर्याप्त थे. और योजना बनाते समय वे लोग हनुमान के बाहुबल का आंकलन करना भूल गए थे. कालनेमि एक मायावी था. वह युद्ध-कुशल नहीं था. इस पर भी यदि कोई अन्य होता तो कालनेमि उसे पलक भी न झपकने देता और उसे यमलोक पहुंचा देता. किन्तु हनुमान कोई साधारण योद्धा नहीं था. और यही समझने में उन सब से भूल हो गई.
उड़ते-उड़ते हनुमान उसे अंतरिक्ष तक ले गए. एक पल रुके और फिर दुगनी गति से नीचे की ओर बढ़ने लगे. इतनी तीव्र गति किसी भी सामान्य व्यक्ति से सहन नहीं हो सकती थी.
कालनेमि को भी इससे कष्ट हो रहा था. कुछ ही पल में वह स्थान और वहां गाड़ी हनुमान की गदा दिखने लगी. तभी हनुमान ने ज़ोर से कालनेमि को अपनी पूंछ से नीचे ऐसे फेंक दिया जैसे कोई गुलेल से पत्थर को फेंकता है. कालनेमि ने आँखें खोलने का प्रयत्न किया तो देखा कि हनुमान ने गदा को लक्ष्य बनाकर उसे फेंका है. वह कुछ भी नहीं कर सकता था. रावण का सबसे बड़ा मायावी किसी असहाय की भांति अपनी मृत्यु की ओर बढ़ रहा था. कालनेमि का सर ज़ोर से गदा से टकराया. वह गिरा और अकस्मात् ही उसके मुख से एक वाक्य निकला, “श्री राम!” इसके साथ ही उसने प्राण छोड़ दिए.